

भगवान विष्णु कौन हैं?
भगवान विष्णु का कार्य है सृष्टि का पालन-पोषण, धर्म की रक्षा और संतुलन बनाए रखना। जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है और धर्म संकट में पड़ता है, तब-तब भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेकर अधर्म का नाश करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
विष्णु जी के नाम और रूप
भगवान विष्णु धरती के पालनहार को नारायण, हरि, केशव, गोविंद, माधव, दामोदर, श्रीपति, लक्ष्मीपति, अच्युत, अनंत, आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कहा जाता है की धरती का पूरा भार उनके शेषनाग के फन पर टिका हुआ है , जो भी भक्त पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की भक्ति करता हैं उसे भगवान के दर्शन जरूर प्राप्त होते हैं |
उनकी पूजा भक्ति, ज्ञान और योग मार्ग से की जाती है , अगर आप उनके कार्यों को विस्तार रूप में जानना चाहते हैं तो श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णुपुराण और वेदों में इनकी महिमा विस्तार से वर्णित है।


भगवान विष्णु का वाहन
भगवान विष्णु के वाहन है गरुड़ को माना जाता हैं , जो पक्षियों के देवता माने जाते हैं । श्री गरुड़ अर्ध-मानव यानी आधे मानव और आधे पक्षी के रूप में माने जाते हैं। वे भगवान विष्णु के सबसे प्रिये भक्त हैं और इसके साथ उन्हें गरुड़ध्वज भी कहा जाता है। जिस गरुड़ पुराण में मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों को बताया गया है, उसी गरुड़ के नाम पर है।


भगवान विष्णु का निवास
भगवान विष्णु का निवास वैकुण्ठ लोक को माना जाता हैं, जिसे परमधाम और मोक्षधाम कहा गया है। पुराणों की कहानियों और ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु वैकुण्ठ में क्षीरसागर (दूध का महासागर) में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं, जहाँ उनके चरणो में माँ लक्ष्मी जी विराजती हैं |
मान्यता है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान की आस्था में लीन रहता हैं और जिंदिगी में बुरे कर्मों से दूर रहता हैं तो उसकी आत्मा भी मोक्ष के बाद वैकुण्ठ को प्राप्त करती हैं।
भगवान विष्णु की पत्नी
विष्णु जी की अर्धांगिनी हैं देवी लक्ष्मी, जो धन, वैभव, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी हैं, क्योंकि जब वासुकि नाग को और मंधार पर्वत पर बाँध कर समुद्र मंथन हुआ था तो माता देवी एक रत्न के रूप में प्रकट हुई थी | ,वे हर अवतार में भगवान विष्णु के साथ अवतरित होती हैं |
जैसे राम अवतार में – सीता के रूप में ,कृष्ण अवतार में रुक्मिणी या राधा के रूप में , वामन अवतार में – पद्मा के रूप में , इसलिए विष्णु को भी श्रीपति कहा जाता है।

भगवान विष्णु के अवतार और उनसे जुडी प्रमुख बातें
मत्स्य अवतार

विष्णु भगवान ने पहला अवतार विशाल मछली के रूप में धरती को जलप्रलय में डूब रही थी और राक्षस हयग्रीव ने वेदों की चोरी कर ली थी, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) रूप धारण किया। उन्होंने वैवस्वत मनु को एक नाव दी और उन्हें सभी प्रजाओं, ऋषियों, वनस्पतियों, बीजों को सुरक्षित करने का आदेश दिया। भगवान मत्स्य ने समुद्र में गोता लगाकर वेदों को राक्षस से छुड़ाया और संसार की नई सृष्टि का प्रारंभ किया |
कूर्म अवतार

विष्णु भगवान का दूसरा अवतार कछुए का रूप था , जिसका प्रमुख उद्देश्य समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता| जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब मन्दार पर्वत को मथनी बनाया गया। लेकिन वह समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर समुद्र के तल पर उसकी पीठ पर पर्वत को संतुलित किया। इस अवतार से अमृत, लक्ष्मी, ऐरावत, कल्पवृक्ष आदि अनेक दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुईं।
वराह अवतार

भगवान विष्णु का तीसरा अवतार एक विशाल जंगली सूअर था , जिसका उद्देश्य पृथ्वी को पाताल से निकालना था , इस अवतार को भगवान विष्णु ने असुर हिरण्याक्ष का वध करने के लिए लिया था क्योंकि हरिण्याक्ष ने पृथ्वी को पाताल लोक में डुबो दिया था। तब भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) रूप में जन्म लिया। उन्होंने जल में गोता लगाया, पृथ्वी को अपने दाँतों पर उठाया, और हिरण्याक्ष का वध किया। वराह अवतार से पृथ्वी की रक्षा हुई और उसे पुनः संतुलन में स्थापित किया गया।